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स्मार्ट मीटर की स्मार्ट मार: सुविधा के नाम पर त्रासदी की डिजिटल रचना
गोरखपुर सरकार ने सोचा था कि जनता को स्मार्ट बनाएंगे, लेकिन लगता है कि स्मार्ट मीटर ने जनता को 'स्मार्टनेस' की ऐसी मार दी है कि लोग अब पुराने जमाने के लालटेन को मिस करने लगे हैं। जिन गलियों में पहले बिजली चोरी की फुसफुसाहटें होती थीं, अब वहां "कनेक्शन जोड़वा दो भइया!" की गुहार गूंज रही है।

दरअसल, सरकार ने युद्ध स्तर पर स्मार्ट मीटर लगाने का ऐलान किया। अधिकारी भी ऐसे सक्रिय हुए जैसे देश की सीमाओं पर दुश्मन घुस आए हों। हर घर के बाहर खटखट, मीटर लगाओ और मिशन पूरा! लेकिन अब जब उपभोक्ता बिजली बिल चुका कर 'पुनर्जन्म' की उम्मीद में बैठा है, तो स्मार्ट मीटर उसे 'कृपया प्रतीक्षा करें' की तात्कालिक त्रासदी दे रहा है।

टोल-फ्री नंबर भी है, लेकिन वह टोल-फ्री कम और 'आशा फ्री' ज़्यादा साबित हो रहा है। घंटों फोन घुमाइए, म्यूजिक सुनिए, और अंत में "आपका कनेक्शन जुड़वाने का समय समाप्त हुआ" का सुसंवाद सुनिए।

और हां, इस डिजिटल झमेले की कमान किसी सरकारी बाबू के हाथ में नहीं, बल्कि एक प्राइवेट कंपनी "जीनस स्मार्ट मीटर" के पास है, जो शायद गर्मी में भी कूल-कूल वातानुकूलित कमरे में बैठकर "नेटवर्क इश्यू" की तान छेड़े हुए है।

विभाग भी बेबस है, कर्मचारी भी हताश, और जनता? वो तो बस यही कह रही है —
"पहले लालटेन से रोशनी कम थी, अब स्मार्ट मीटर से उम्मीदें!"

आख़िर में यही कहा जा सकता है कि—स्मार्ट मीटर ने बिजली तो क्या, उम्मीदों को भी ‘डिस्कनेक्ट’ कर दिया है!