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दसवीं मोहर्रम को ताज़िए निकाल कर इमाम हुसैन की शहादत को किया गया याद---- इम्तेयाज अहमद

गोरखपुर दसवीं मोहर्रम के दिन लोगों ने इमाम हुसैन की याद में ताज़िए निकाल कर उनकी शहादत को याद किया
आपको बताते चलें प्रशासन की निगरानी में लोगों ने जुलूस भी निकाले जिसमें कई अखाड़े शामिल थे। रविवार को पड़ने वाले दसवीं मोहर्रम को भटहट जामा मस्जिद की तरफ़ से ताजियादारो के साथ तमाम लोगों के लिए शरबत का इंतजाम भी किया गया। जहां लोगों ने रुककर शरबत पिया और कर्बला की ओर चल पड़े
*मोहर्रम क्यों मनाते है*-----
 अली का जैबौ जैन जिंदा है। फातिमा का चैन जिंदा है। न पूछो वक्त की इन बेजुंबा किताबों से जब सुनो आजान तो समझो हुसैन जिंदा है।
बात करें मोहर्रम की तो इस्लाम धर्म के आखिरी नमी पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन ने हक और सत्य की खातिर अपनी शहादत दी थी।
बताते चलें कि हर साल दसवीं मोहर्रम को उनकी याद में ताज़िए बनाकर उनकी शहादत को याद किया जाता है।
 इमाम हुसैन की ये कुर्बानी तमाम बुराईयों और नाइंसाफी को खत्म करने के लिए थी।
इसलिए हर वर्ष मोहर्रम में इस कुर्बानी की याद सिर्फ मुसलमान ही नहीं मनाता बल्कि हर वह इंसान अपने अपने तरीके से मनाता है। जो इंसाफ़ पसंद है। चाहे उसका संबंध किसी भी धर्म या मजहब से क्यों न हो