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बिना कानूनी दांवपेंच समझे पहले मकान क़ब्ज़ा कराया फिर बैकफुट पर आयी राजस्व टीम...

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बिना कानूनी दांवपेंच समझे पहले मकान क़ब्ज़ा कराया फिर बैकफुट पर आयी राजस्व टीम

अपने ही आदेश का पालन कराने कोतवाली थाने पर पहुंचे तहसीलदार सिटी मजिस्ट्रेट के आदेश का हवाला देते हुए तहसीलदार ने किया था कोतवाली पुलिस को आदेश

गोरखपुर किस्सा राजस्व विभाग से जुड़ा है जब दो दिन पहले तहसीलदार साहब अपने खुद के आदेश का अनुपालन कराने अपने नायब तहसीलदार और राजस्व टीम को लेकर कोतवाली थाने पर आ धमके और कोतवाली पुलिस को अपने रौब में लेते हुए बाकायदा शहर कोतवाल की कुर्सी पर विराजमाम हो गए। साहब का रुतबा और राजस्व टीम को देखकर बेचारे कोतवाल साहब भी सकते में आ गए।
आनन फानन में पुलिस टीम तैयार हुई और मौके पर पूरे दलबल के साथ पहुंच गई। कोई कुछ समझ पाता उससे ही मकान पर कब्जे की कार्यवाही युद्ध स्तर पर शुरू हो गई। 
मामला शहर के सबसे कीमती इलाके पुर्दिलपुर में स्थित एक मकान का है। जिसको दो भाइयों भूपेंद्र नाथ घोष व खगेन्द्र नाथ घोष द्वारा 12804 वर्ग फिट जमीन खरीदकर बनाया गया था।
1996 में भूपेंद्र नाथ के एकमात्र पुत्र गोपाल चन्द्र घोष ने कलकत्ता में सीताराम को रजिस्ट्री बैनामा किया। जिसको बाद में इस मकान को सीताराम ने रमन कुमार और सुरेश चन्द्र को वसीयत के जरिये दे दिया। 
चूंकि प्रदेश के बाहर किसी महानगर में की गई रजिस्ट्री प्रभावी होने पर कानूनी अड़चन है इसी को लेकर और सम्भवतः अन्य कारणों से यह सम्पत्ति विवादों में है। 
मामला न्यायालय में लंबित होने के बाद भी तहसीलदार द्वारा सिटी मजिस्ट्रेट के आदेश का हवाला देकर जिस तरह कोतवाली पुलिस के सहयोग से पहले मकान पर कब्ज़ा कराया और फिर उसी तेज़ी से बैकफुट पर आये। उसकी चर्चा तहसील परिसर में जोरों पर है।
बहरहाल मामला ऊपर से जितना हल्का लग रहा है अंदर से उतना ही पेंचीदा और उलझा हुआ है ।
चूंकि सम्पत्ति का मूल्यांकन करोड़ो में किया जा रहा है और कार्यवाही में भ्रष्टाचार की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है । ऐसे में राजस्व विभाग के एक ज़िम्मेदार अधिकारी द्वारा बीच शहर में नियम कानून को ताक पर रख कर की गई इस कार्यवाही से न्याय व्यवस्था पर प्रश्रचिन्ह लग गया है जिसकी जांच बेहद ज़रूरी है।